Mahant Suraj Das : 12 साल का बालक सूरज दास कैसे महंत बनें जानिए 

Mahant Suraj Das : महंत सूरज दास ने खुद बताया कि हम जब स्कूल से आते थे तो हमारे भाई लोग अलग-अलग कामों में जुट जाते थे, कोई मोबाइल चलता तो कोई कुछ करता था लेकिन हम लवकुश देखते थे. उससे मुझे प्ररणा मिली की जब इतनी छोटी उम्र के बच्चे बड़े-बड़े काम कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते हैं. इसलिए तब से हम घर से निकल पड़े और भगवान की शरण में आ गए।
 

महंत सूरज दास ने खुद बताया कि हम जब स्कूल से आते थे तो हमारे भाई लोग अलग-अलग कामों में जुट जाते थे।

 हनुमान जी की पूजा शुरू की और बाद में हमें हनुमानगढ़ी का महंत बना दिया है।

सूरज दास जी कहते है कि हिन्दू परिवारों में से एक सन्तान को ईश्वर की भक्त के लिये लगाना चाहिए।

Mahant Suraj Das , अयोध्या। एक 12 साल का बालक हनुमानगढ़ी के महंत बन गये है। सोशल मीडिया पर तरह-तरह की वीडियो वायरल हो रही है। लेकिन सब के मन में एक ही सवाल उठ रहा है कि जो 12 साल की उम्र खेलने और पढ़ाई की होती है वे उस उम्र में महंत कैसे बन गया। आये जानते है खुद महंत सूरज दास से जिन्होंने कई न्यूज चैनलों को इन्टरव्यू के दौरान विस्तार से बताया है। 

महंत सूरज दास ने खुद बताया कि हम जब स्कूल से आते थे तो हमारे भाई लोग अलग-अलग कामों में जुट जाते थे, कोई मोबाइल चलता तो कोई कुछ करता था लेकिन हम लवकुश देखते थे. उससे मुझे प्ररणा मिली की जब इतनी छोटी उम्र के बच्चे बड़े-बड़े काम कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते हैं. इसलिए तब से हम घर से निकल पड़े और भगवान की शरण में आ गए।  हनुमान जी की पूजा शुरू की और बाद में हमें हनुमानगढ़ी का महंत बना दिया है। एक सावल में उन्होंने यूपी के मुख्यमंत्री को अपना आर्देश बताया है और बड़े होकर उनकी तरह बनने का सपना है। सीएम योगी से वे कई बार मिल चुके है। सीएम योगी ने उनकी प्रसन्नसा की है। मंहत की भक्ती को देखकर प्रभावित हुए है। 


एक सावल के जबाव में जब उनसे पूछा गया कि आपके मंहत बनने पर आपके परिजनों की क्या राय थी तो उन्होंने बताया कि हम 6 भाई है। मेरे माता-पिता ने पहले मना किया था लेकिन मैने जिदद की तो उन्होंने मुझे यहां भेज दिया है। मेरी माता को दुख ज्याद हुआ था लेकिन बाद में वे  सब ठीक हो गया। सूरज दास जी कहते है कि हिन्दू परिवारों में से एक सन्तान को ईश्वर की भक्त के लिये लगाना चाहिए।

अगर इनकी शिक्षा की बात करें तो वे तीसरी कक्षा तक पढ़े है हिन्दी, गणित ठीक से आती है जबकि अग्रंेजी नहीं आती है और अगे पढ़नी भी नहीं है इसकी एक वजह बताई है कि जब हमारा देश में हिन्दी बोली जाती है तो हम अग्रेजी पढ़कर क्या करेंगें। अब महंत के साथ-साथ संस्कृत में पढ़ाई कर रहे है। इनकी वीडियो देखकर लोग हैरान रहे जाते है कि इतनी छोटी उम्र में इतना ज्ञान कहा से मिल गया है। 

महंत सूरज दास जी को हनुमान चालीसा, रामचरित्र गान की चौपाईयां याद है वे सुबह-शाम पूजा करते है। ऐसे में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में किसी कारण की वजह से नहीं आने वाले लोगों को सूरज दास ने संदेश भी दिया। उन्होंने कहा, जो लोग यहां नहीं आ रहे हैं, वे 22 जनवरी को कीर्तन करें, दीपक जलाएं और घर पर ही दीपावली मनाएं।  उनका पूरा दिन हनुमानगढ़ी मंदिर में हनुमान जी की सेवा में बीतता है।


महंत सूरज दास ने बताया की जब एक बार श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ किया और यज्ञ का श्वेत अश्व (घोड़ा) छोड़ दिया। घोड़ा जहां-जहां जाता था वहां के राजा अयोध्या की अधीनता स्वीकार कर लेते या युद्ध करके पराजित हो जाते थे। यह घोड़ा भटकते हुए जंगल में आ गया। वहां लव और कुश ने इसे पकड़ लिया। घोड़ा पकड़ने का अर्थ है अयोध्या के राजा को चुनौती देना। 

 
राम को जब यह पता चला कि किन्हीं सुकुमारों ने घोड़ा पकड़ लिया तो पहले उसका आशय जानने के लिए दूत भेजे। जब यह पता चला कि लव और कुश घोड़ा छोड़ने को तैयार नहीं है और वे चुनौती दे रहे हैं तो श्रीराम के भाइयों भरत, शत्रुघ्न और लक्ष्मण के साथ लव-कुश का युद्ध हुआ लेकिन सभी भाई पराजित होकर लौट आए। यह देखकर श्रीराम को खुद ही युद्ध करने आना पड़ा लेकिन युद्ध का कोई परिणाम नहीं निकला। तब राम ने दोनों बालकों की योग्यता देखते हुए उन्हें यज्ञ में शामिल होने का निमंत्रण दिया।

 
नगर में पहुंचकर लव और कुश ने राम की गाथा का गुणगाण किया और दरबार में उन्होंने माता सीता की व्यथा कथा गाकर सुनाई। यह सुन और देखकर प्रभु श्रीराम को ये पता चला गया कि लव और कुश उनके ही बेटे हैं। उन्हें तब बहुत दुख हुआ और वे सीता को पुनरू राज महल ले आए।एक बार श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ किया और यज्ञ का श्वेत अश्व (घोड़ा) छोड़ दिया।