Gogamedi mela 2023 : जाने इस बार कब से शुरू होगा गोगामेड़ी मेला

 
jaharveer baba

Gogamedi mela 2023  हर साल लाखों भक्त गोगामेडी Gogamedi  में बाबा जहारवीर बाबा के दर्शन करने आते है।  मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से मन्नत मांगता है उसकी मन्नत पूरी हो जाती है। मेला अगस्त के माह से शुरू होता है। जो कई माह तक चलता है। 


बीते साल 11 अगस्त 2022 से 10 सितंबर 2022 तक गोगामेड़ी Gogamedi मेले चला था इस बार अभी तक कोई ऐसी जानकारी नहीं है। अगस्त से पहले जिला प्रशासन की बैठक होती है उसमें मेले की रूपरेखा तैयार की जाती है। मेले की तैयारियों को लेकर जिला कलेक्टर समीक्षा करते है।


बैठक में जिला कलेक्टर ने मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए शुद्ध पेयजल, विद्युत, छाया, साफ- सफाई, पार्किंग, खाद्य पदार्थों की समय-समय पर सैंपलिंग, कीटनाशकों का समय-समय पर छिड़काव, नहरी पानी की व्यवस्था, सीसीटीवी कैमरे सहित सुरक्षा व्यवस्था पर चर्चा करते हुए संबंधित विभागों के अधिकारियों को व्यवस्थाएं चाक चौबंद रखने के निर्देश दिए जाते है।

इस बार भी अगस्त 2023 से मेला शुरू होगा । जिसमें देशभर से लाखों श्रद्धालु पहुंचते है। जानकारी के अनुसार इस साल 11 अगस्त से मेला शुरू होगा जिसमें पहले 15 दिन उठों और अन्य पशुओं का मेला लगता है। जिसमें पशुओं की विक्री होती है। बाद के 15 दिन भक्त जहारवीर बाबा के दर्शन करते है।

Mela is held in Gogamedi गोगामेड़ी में लगता है मेला 

राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले की भादरा विधानसभा क्षेत्र का एक शहर गोगामेड़ी जिसे धुरमेड़ी भी कहते है। यहां भादों कृष्णपक्ष की नवमी को गोगाजी देवता का मेला भरता है। गोरख टीले पर यात्रियों का यह पडाव अष्टमी की रात्रि तक रहता है। नवमीं की प्रातः सारा मेला गोगामैडी की ओर चल पड़ता है। गोगामैडी आकर यात्रियों को गोगाजी की समाधि के दर्शन की उत्कंठा बढ़ जाती है। उनको गोगामैडी व समाधि के सुविधापूर्वक दर्शन हो सके इसलिए यात्रियों को पंक्तिबद्ध होकर खड़ा होना पड़ता है।

Tigri Ganga Mela 2022:

यात्रियों की यह पंक्ति काफी लंबी हो जाती है। पंक्तिबद्ध व्यक्तियों की पंक्ति गोगामैडी के मुख्य दरवाजे से लेकर गोरखा टीले के मध्य तक सुनियोजित ढंग से लग जाती है। यात्रियों की यह लंबी पंक्ति ऐसी लगती है कि मानो ऊची नीची लम्बी दीवार को पिले रंग से पोत दिया हो। क्योंकि अधिकतर यात्री गोगामेड़ी मेले मे पीले वस्त्र धारण करके आते है। आगे पंक्ति मे खडे व्यक्ति को जब मैडी मे समाधि के दर्शनार्थ प्रवेश मिल जाता है तथा वे समाधि गोगामेड़ी के दर्शन पूजन एवं परिक्रमा कर लेते है तब दूसरे यात्रियों को प्रवेश की सुविधा मिल पाती है। इस व्यवस्था से यात्रियों का भीड़ के धक्के मुक्को से बचाव हो जाता है। यह क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक की सारे यात्री समाधि के दर्शन नही कर लेते। यात्री मैडी मे प्रवेश पाकर गोगाजी की समाधि के सामने चौक मे भूमिष्ट होकर प्रणाम करते है।

 Who was jaharveer baba जहारवीर बाबा कौन थे

गोगाजी गुरु गोरखनाथ के परमशिष्य थे। उनका जन्म विक्रम संवत 1003 में चुरू जिले के ददरेवा गाँव में हुआ था। सिद्ध वीर गोगादेव के जन्मस्थान राजस्थान के चुरू जिले के दत्तखेड़ा ददरेवा में स्थित है जहाँ पर सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग मत्था टेकने के लिए दूर-दूर से आते हैं। कायम खानी मुस्लिम समाज उनको गोगामेड़ी जाहर पीर के नाम से पुकारते हैं तथा उक्त स्थान पर मत्‍था टेकने और मन्नत माँगने आते हैं। इस तरह यह स्थान हिंदू और मुस्लिम एकता का प्रतीक है। मध्यकालीन महापुरुष गोगाजी हिंदू, मुस्लिम, सिख संप्रदायों की श्रद्घा अर्जित कर एक धर्मनिरपेक्ष लोकदेवता के नाम से पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए।

Gogamedi

गोगाजी का जन्म राजस्थान के ददरेवा (चुरू) चौहान वंश के राजपूत शासक जैबर (जेवरसिंह) की पत्नी बाछल के गर्भ से गुरु गोरखनाथ के वरदान से भादो सुदी नवमी को हुआ था। चौहान वंश में राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा थे। गोगाजी का राज्य सतलुज सें हांसी (हरियाणा) तक था। गोगाजी के जन्म की कहानी भी बडी रोचक है। एक किवदंती के अनुसार गोगाजी की मां बाछल देवी निरूसंतान थीं। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला। गुरु गोरखनाथ गोगामेडी के टीले पर तपस्या कर रहे थे।

बाछल देवी उनकी शरण मे गईं तथा गुरु गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और कहा कि वे अपनी तपस्या पूरी होने पर उन्हें ददरेवा आकर प्रसाद देंगे जिसे ग्रहण करने पर उन्हें संतान की प्राप्ति होगी। तपस्या पूरी होने पर गुरु गोरखनाथ बाछल देवी के महल पहुंचे। उन दिनों बाछल देवी की सगी बहन काछल देवी अपनी बहन के पास आई हुई थी।

गुरु गोरखनाथ से काछल देवी ने प्रसाद ग्रहण कर लिया और दो दाने अनभिज्ञता से प्रसाद के रूप में खा गई। काछल देवी गर्भवती हो गई। बाछल देवी को जब यह पता चला तो वह पुनरू गोरखनाथ की शरण में गईं। गुरु बोले, देवी ! मेरा आशीर्वाद खाली नहीं जायेगा तुम्हे पुत्ररत्न की प्राप्ति अवश्य होगी। गुरु गोरखनाथ ने चमत्कार से एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गईं और तदुपरांत भादो माह की नवमी को गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजी पड़ा।

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