तिगरीधाम: दिवंगत आत्माओं के लिये 26 नवंबर को दीपदान, जानें पूरी विधि ​​​​​​​

Tigri Ganga Mela 2023 :अमरोहा। महाभारत काल से चली आ रही दीपदान का आज फिर देखने को मिला। चौदस की रात्रि में हजारोें लोगों ने दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए गंगा में दीपदान किया। इस बार दीपदान 26 नंवबर 2022 को होगा। इस दौरान अपने सगे संबंधी व परिजनों से बिछड़ों को याद कर उनके आंसू छलक उठे। इस परंपरा के निर्वहन के वक्त गंगा घाट ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मानों आकाश से तारे धरती पर उतर आए हों।

 
Deepdaan

अमरोहा। Tigri Ganga Mela 2023 : महाभारत काल से चली आ रही दीपदान का आज फिर देखने को मिला। चौदस की रात्रि में हजारोें लोगों ने दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए गंगा में दीपदान किया। इस बार दीपदान 26 नंवबर 2022 को होगा। इस दौरान अपने सगे संबंधी व परिजनों से बिछड़ों को याद कर उनके आंसू छलक उठे। इस परंपरा के निर्वहन के वक्त गंगा घाट ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मानों आकाश से तारे धरती पर उतर आए हों।

ऐसा माना जाता है महाभारत युद्ध में मारे गए हजारों सैनिक और असंख्य योद्धाओं की आत्म शांति के लिए भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों की मौजूदगी में सर्वप्रथम दीपदान किया था। बुधवार को हजारों की संख्या में लोगों ने गंगा घाटों पर पहुंचकर दीपदान किया। जिनके परिवार के सदस्य उनके बीच अब नहीं रहे। दीपदान उन्हीं दिवंगत आत्मों की शांति के लिए संबंधित परिवार के लोग करते हैं। सूर्यास्त होते ही दीपदान का सिलसिला शुरू हो गया। देररात तक दीपदान जारी रहा।


तिगरी गंगा मेले की शुरुआत त्रेता युग में हुई थी। मान्यता है कि अपने नेत्रहीन माता-पिता को तीर्थ करवाने के लिए निकले श्रवण कुमार गढ़मुक्तेश्वर के नक्का कुएं पर रुके थे। वहां उन्हें देखने के लिए लोगों की भीड़ लग गई थी। कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान करने के बाद श्रवण कुमार हरिद्वार के लिए रवाना हो गए थे। इन पांच दिन तक वह तंबू लगाकर रहे। तभी से यहां मेले की शुरुआत हुई। इसके अलावा पांडवों ने महाभारत युद्ध में मरने वाले अपने सगे संबंधियों की आत्मा शांति के लिए गंगा में दीपदान भी किया था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रसिद्ध तिगरी गंगा का मेला कब शुरू हुआ, इसका कोई सरकारी रिकार्ड नहीं है।

जिला पंचायत के पास भी इसकी कोई जानकारी नहीं है। मान्यता है कि मेले की शुरुआत त्रेता युग में हुई थी। तब यह मेला गढ़ के प्राचीन नक्का के कुंए के आसपास लगता था लेकिन धीरे-धीरे गंगा की धार की दिशा बदलती गई और मेला तिगरी की तरफ बढ़ता गया। गंगा के दूसरी तरफ भी मेला लगने लगा। धीरे-धीरे मेले ने वृहद रूप ले लिया और श्रद्धालुओं के बीच मान्यता भी बढ़ गई। अब मेले में उत्तर प्रदेश के साथ ही दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान व आसपास अन्य कई प्रदेशों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं। लगातार पांच दिन तक श्रद्धालु यहां डेरे बनाकर रुकते हैं।

कार्तिक पूर्णिमा स्नान के बाद श्रद्धालु घरों की ओर वापस लौट जाते हैं। मेले में प्रत्येक वर्ष दस लाख से अधिक श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए पहुंचते हैं। गांव तिगरी निवासी पंडित गंगासरन के मुताबिक बुजुर्गों की माने तो यह मेला त्रेता युग से लगता आ रहा है। बुजुर्ग बताते हैं कि श्रवण कुमार अपने नेत्रहीन माता-पिता को कंधे पर लादकर त्रेता युग में तीर्थ यात्रा कराने के लिए निकले थे। तब वे कार्तिक माह की एकादशी को नग के कुएं पर रुके थे।

श्रवण कुमार का माता-पिता के प्रति सेवाभाव देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग यहां जमा हुए थे, तभी से मेला लगता आ रहा है। बताया कि पांडवों ने भी अपने परिजनों की आत्मा शांति के लिए यहां पूर्णिमा से एक दिन पहले गंगा में दीपदान किया था। तभी से मृत आत्माओं की शांति के लिए यहां प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पहले हजारों की संख्या में लोग अपने परिजनों की याद में दीपदान करने आते हैं।


ऐसे करते हैं दीपदान

तिगरी धाम। तिगरी निवासी पंडित राम कुमंर शर्मा ने बताया कि मृत आत्माओं की शांति के लिए दीपदान किया जाता है। दिवंगतों के परिजन गंगा स्नान कर झोपड़ी व चटाई में दीपक जलाकर रखते हैं और गंगा में छोड़ देते हैं। चटाई पर रखा होने की वजह से दीपक गंगा में तैरने लगता है।

लाख श्रद्धालु पहुंचते है तिगरीधाम

Tigri Ganga Mela 2023


कार्तिक पूर्णिमा पर तिगरी धाम पर लगने वाला गंगा मेला उत्तर भारत का प्राचीन और ऐतिहासिक मेला है। तिगरी गंगा मेले में जिले के साथ ही आसपास जिलों के 15 से 20 लाख श्रद्धालु पहुंचते हैं। गंगा किनारे श्रद्धालु डेरा लगाकर मेले में रहते हैं। मेला आस्था का बड़ा संगम कहलाता है। तिगरी गंगा मेले को राज्य स्तर का दर्जा भी मिल चुका है। 

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