नई संसद पर सत्ता पक्ष-विपक्ष के बीच मायावती के Twitter से मचा हड़कंप

 
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New Parliament Building:देश की नई नवेली संसद तैयार है. कांग्रेस पार्टी समेत 19 विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं. मुद्दा है संसद के उद्घाटन का. विरोध में खड़े दलों का कहना है कि नई संसद का उद्घाटन राष्ट्रपति से कराना था. नहीं करा रहे तो हम भी नहीं आ रहे. विरोध है तो समर्थन में भी आवाज उठी ही होंगी. उठी हैं. 25 राजनीतिक दलों को कार्यक्रम में शामिल होने से कोई गुरेज नहीं है. इन्हीं में से एक दल है बहुजन समाज पार्टी.

बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने उसी अंदाज में इस कार्यक्रम का समर्थन किया, जिसमें पिछले कुछ सालों से वो कर रही हैं. उन्होंने ट्वीट किया. एक ट्वीट में उन्होंने विपक्ष के पूरे विरोध को धत्ता बताते हुए कहा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों से संसद का उद्घाटन न कराए जाने का बहिष्कार अनुचित है. सरकार ने बनाया है तो सरकार ही उद्घाटन की हकदार. मायावती ने विपक्ष के उस दावे को भी खारिज कर दिया, जिसमें इस मसले को आदिवासी महिला के सम्मान से जोड़ा जा रहा था. तर्क में मायावती ने सवाल किया कि आदिवासी महिला के सम्मान की बात करने वाले विपक्ष ने चुनाव में उनके खिलाफ उम्मीदवार क्यों खड़ा किया था.

नई संसद पर बीजेपी सरकार को समर्थन देने वाली मायावती ने आखिरी ट्वीट में ये भी कह दिया कि वो पार्टी की समीक्षा बैठकों में व्यस्त हैं, इसलिए इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाएंगी. इस कथन को हकीकत मानने का जी नहीं करता है. ऐसा इसलिए क्योंकि 2017 के चुनावों से बहुजन समाज पार्टी की जो हालत हुई है, उससे पार्टी में समीक्षा जैसी कोई पहल तो असंभव सी लगती है. 2019 में बसपा ने समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. फायदा मिला और 10 सीटों पर हाथी की जीत हुई. फिर 2022 के विधानसभा चुनाव में मायावती की पार्टी ने अकेले दम भरा तो हाथी ने जैसे-तैसे लाज बचाई और सूबे की 403 में से एक सीट ही अपने खाते में ला पाई. वो भी पार्टी के दम से नहीं, नेता के स्थानीय वर्चस्व के बूते.


रही सही कसर हाल ही में संपन्न होने वाले नगर निगम चुनाव ने पूरी कर दी. पिछली बार निगमों में दो सीटों पर जीतने वाली बहुजन समाज पार्टी शून्य पर सिमट गई. समीक्षा और पार्टी को मजबूत करने की बात कहने वाली मायावती निकाय चुनावों के दौरान मायावती एक बार भी किसी सभा के आयोजन में नहीं निकलीं. न ही कोई रैली और न ही कोई रोड शो. यूपी को छोड़ वो कर्नाटक में सभा करने निकल गईं, जहां पार्टी का मौजूदा राजनीति में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है. हां यूपी में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस जरूर की, जिसमें कहा कि पार्टी पदाधिकारी मोर्चा संभाल लेंगे. मोर्चा नहीं संभला और यूपी की सत्ता पर राज करने वाली पार्टी निगमों में लाज भी न बचा पाई.

इसके अलावा बसपा ने मुस्लिम बाहुल्य और सपा की संभावित जीत की उम्मीद वाली सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर जातीय समीकरण को ऐसा भेदा कि बीजेपी की जीत पक्की हो गई. मायावती समय-समय पर बीजेपी की जमकर आलोचना करती रहती हैं. लेकिन उनकी नीतियां अक्सर बीजेपी को फायदा पहुंचा ही देती हैं. अब एक बार फिर जब विपक्ष लामबंद हो रहा है, तब भी मायावती की पार्टी सत्ता पक्ष में जमी बीजेपी के साथ दिखाई दे रही है. वो नहीं हैं, क्योंकि वो तो पार्टी को मजबूत करने की कोशिश में जुटी हैं. सवाल ये है कि किस पार्टी को और किसके लिए?

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