मयंक त्रिगुण, वरिष्ठ संवाददाता
मुरादाबाद। बच्चों को गुलामी जैसे हालात से आज़ाद कराने के लिए श्रम विभाग ने कमर कस ली है। उप श्रमायुक्त दीप्तिमान भट्ट के नेतृत्व में शुक्रवार को शहर के दो इलाकों में ताबड़तोड़ छापेमारी हुई। नतीजा – कुल 8 बाल और किशोर मजदूरों को मुक्त कराया गया। हैरानी की बात ये कि ये बच्चे खतरनाक हालात में दिन-रात काम कर रहे थे।
चलाया बड़ा अभियान?
अभियान की कमान खुद उप श्रमायुक्त दीप्तिमान भट्ट के हाथ में थी। उनके साथ श्रम प्रवर्तन अधिकारी और एण्टी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (AHTU) की संयुक्त टीम थी। टीम ने एक साथ बंगला गाँव और जिगर विहार कॉलोनी के कई इलाकों में दबिश दी।
कब और कहाँ हुई छापेमारी?
शुक्रवार को सुबह से ही टीम सक्रिय हो गई। बंगला गाँव और जिगर विहार कॉलोनी के प्रतिष्ठानों पर अचानक धावा बोला गया। छोटी-छोटी दुकानों, वर्कशॉप और फैक्टरियों में छिपे बच्चे काम करते मिले।
क्या-क्या मिला वहाँ?
टीम को चार प्रतिष्ठानों से 5 बाल मजदूर (14 साल से कम उम्र) और दो प्रतिष्ठानों से 3 किशोर मजदूर (14-18 साल) मिले। ये बच्चे भारी मशीनों के बीच, धूल-धुएँ में और खतरनाक केमिकल के संपर्क में काम कर रहे थे। कोई जूते जोड़ रहा था, कोई लोहे की वेल्डिंग कर रहा था तो कोई पूरे दिन भट्टी के सामने खड़ा था।
कैसे बचाए गए बच्चे?
जैसे ही बच्चे मिले, उन्हें तुरंत वहाँ से सुरक्षित बाहर निकाला गया। सभी को पहले मुख्य चिकित्साधिकारी के पास आयु प्रमाणीकरण के लिए ले जाया गया। मेडिकल जाँच के बाद सभी बच्चों को बाल कल्याण समिति (CWC) के हवाले कर दिया गया। अब इन बच्चों को सरकारी संरक्षण गृह में रखा जाएगा, पढ़ाई कराई जाएगी और पूरा पुनर्वास किया जाएगा।
मालिकों पर क्या कार्रवाई हुई?
जिन छह प्रतिष्ठानों में बच्चे मिले, वहाँ मौके पर ही बाल श्रम कानून (1986, संशोधित 2016) के उल्लंघन का नोटिस थमा दिया गया। सभी मालिकों के खिलाफ केस दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। जुर्माना से लेकर जेल तक की सजा हो सकती है।
क्यों जरूरी है ऐसा सख्त कदम?
उप श्रमायुक्त दीप्तिमान भट्ट ने साफ-साफ कहा, “बाल श्रम कोई छोटा अपराध नहीं, ये बच्चों का पूरा बचपन और भविष्य छीन लेता है। हमने सभी नियोजकों को आखिरी चेतावनी दी है – अगर आगे कभी भी कोई बच्चा काम करते मिला तो सीधे जेल भेजेंगे। कोई रियायत नहीं।”
उन्होंने बताया कि ये सिर्फ शुरुआत है। अब हर हफ्ते ऐसे छापे पड़ेंगे। मुरादाबाद को पूरी तरह बाल श्रम मुक्त बनाने तक चैन से नहीं बैठेंगे। बच्चों को स्कूल भेजना है, खेलना है, सुरक्षित बचपन देना है।
इस अभियान से इलाके के दूसरे दुकानदार और फैक्ट्री मालिक भी डर गए हैं। कई जगहों पर तो बच्चे मिलने की खबर आते ही मालिकों ने खुद ही बच्चों को घर भेज दिया।
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