नई दिल्ली। क्या आपका नया मोबाइल फोन सरकार की नजर में रहने वाला हो गया है? संचार साथी ऐप को हर नए फोन में डालने का सरकारी फरमान सुनकर विपक्ष ने हंगामा मचा दिया। जासूसी का डर फैल गया, लेकिन संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लोकसभा में साफ-साफ कह दिया – ऐसी कोई बात नहीं! ये ऐप सिर्फ आपकी सुरक्षा के लिए है, जासूसी के लिए बिल्कुल नहीं।
सिंधिया vs विपक्ष, जनता बीच में फंसी
इस पूरे मामले के केंद्र में हैं संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया। उन्होंने लोकसभा में खड़े होकर विपक्ष के सवालों का जवाब दिया। विपक्ष की तरफ से कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा और दीपेंद्र हुड्डा जैसे नेता आगे आए। उनका कहना था कि लोगों को बिना निगरानी के मैसेज भेजने का हक मिलना चाहिए। दूसरी तरफ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का दावा है कि ये ऐप जनता को ही ताकत दे रहा है। सिंधिया ने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार देश की जनता के हाथ में अधिकार देना चाहती है ताकि वे खुद को सुरक्षित रख सकें।” असल में, ये ऐप आम यूजर्स के लिए बना है, जो साइबर धोखाधड़ी और फोन चोरी से परेशान हैं। लाखों लोग पहले ही इससे फायदा उठा चुके हैं।
ऐप अनिवार्य, लेकिन जासूसी का आरोप गलत
मुख्य बात ये है कि सरकार ने 28 नवंबर को आदेश जारी किया कि सभी नए मोबाइल फोनों में ‘संचार साथी’ ऐप को प्रीलोड करना होगा। पुराने फोनों पर अपडेट से ये खुद-ब-खुद इंस्टॉल हो जाएगा। विपक्ष ने चिल्ला दिया – ये जासूसी का जरिया है! लेकिन सिंधिया ने साफ किया, “संचार साथी ऐप के माध्यम से न तो जासूसी संभव है और ना होगी।” ये ऐप मोबाइल चोरी रोकने और साइबर फ्रॉड से बचाने के लिए है। 2023 में शुरू हुए पोर्टल ने लाखों चोरी फोन ढूंढ निकाले और छह लाख धोखाधड़ी के केस रोके। सिंधिया ने जोर देकर कहा, “पूरा अधिकार नागरिक का है। हमने केवल सभी को यह ऐप उपलब्ध कराने के लिए कदम उठाया है।” मतलब, ऐप है तो सही, लेकिन ये आपकी मर्जी पर चलता है।
मंगलवार हंगामा, बुधवार सफाई
ये विवाद मंगलवार को भड़का, जब कांग्रेस सांसदों ने संसद में आवाज उठाई। प्रियंका गांधी ने कहा कि सरकार लोगों की प्राइवेसी पर कुठाराघात कर रही है। अगले दिन, यानी 3 दिसंबर 2025 को लोकसभा के प्रश्नकाल में सिंधिया ने जवाब दिया। पोर्टल की शुरुआत 2023 में हुई थी, लेकिन ऐप का असली रोलआउट 2025 में शुरू हुआ। सरकारी आदेश तो 28 नवंबर को आया, जिसके बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई। सिंधिया ने बताया कि जनता की अच्छी प्रतिक्रिया देखकर ही ये कदम उठाया गया। “जनता की प्रतिक्रिया पर मिली सफलता के आधार पर यह प्रयोग किया गया है,” उन्होंने कहा। भविष्य में भी जनता के सुझावों से बदलाव होगा।
संसद से साइबर वर्ल्ड तक, भारत भर में असर
ये पूरी घटना भारत की संसद से शुरू हुई। लोकसभा में विपक्ष के सवालों पर सिंधिया ने सफाई दी। लेकिन असर तो पूरे देश पर पड़ेगा – हर नए मोबाइल फोन पर ये ऐप पहुंचेगा। चाहे दिल्ली हो या कोई छोटा शहर, साइबर धोखाधड़ी हर जगह का सिरदर्द है। सिंधिया ने बताया कि सोशल मीडिया के दुरुपयोग से बचाने के लिए 2023 में पोर्टल लॉन्च किया गया था। अब ऐप के जरिए ये सुविधा मोबाइल तक पहुंच रही है। विपक्ष का कहना है कि ये निगरानी संसद के फैसले से आम आदमी की जिंदगी में घुसपैठ करेगी। लेकिन सरकार का तर्क है कि ये सुरक्षा का कवच है, न कि जाल।
क्यों? (Why) – साइबर फ्रॉड और चोरी रोकने की जंग
सबसे बड़ा सवाल – आखिर ये ऐप क्यों? सिंधिया ने साफ कहा, “इस ऐप से जनभागीदारी के आधार पर साइबर धोखाधड़ी से नागरिकों को बचाना और मोबाइल चोरी की घटनाओं को कम करना ही उद्देश्य है।” आजकल फोन चोरी और ऑनलाइन ठगी आम हो गई है। पोर्टल ने पहले ही लाखों चोरी फोन ट्रेस किए और छह लाख फ्रॉड रोक दिए। सरकार का मकसद जनता को सशक्त बनाना है, न कि निगरानी करना। विपक्ष को शक है कि ये प्राइवेसी चुराएगा, लेकिन सिंधिया ने काउंटर दिया – जब तक आप रजिस्टर न करें, ऐप कुछ नहीं करेगा। ये जनता के सुझावों पर बनेगा, ताकि भविष्य में और बेहतर हो। मोदी सरकार की सोच है कि लोग खुद अपनी रक्षा करें, बिना सरकारी हस्तक्षेप के।
कैसे? (How) – यूजर कंट्रोल में, हटाना भी आसान
अब सबसे जरूरी – ये सब कैसे काम करेगा? सिंधिया ने बताया कि ऐप को नए फोन में डिफॉल्ट डाल दिया जाएगा, लेकिन ये किसी दूसरे ऐप की तरह है – आप इसे अनइंस्टॉल कर सकते हैं। बिना आपके पंजीकरण के ये एक्टिव नहीं होगा। “जब तक उपयोगकर्ता इस पर पंजीकरण नहीं करते, उनके मोबाइल में यह काम नहीं करेगा,” उनका साफ कहना है। पोर्टल की तरह, ये जनभागीदारी पर चलता है। आप चोरी फोन रिपोर्ट करेंगे, फ्रॉड की शिकायत करेंगे, और सिस्टम काम करेगा। जासूसी? बिल्कुल नामुमकिन! सरकार ने सिर्फ प्लेटफॉर्म दिया है, कंट्रोल यूजर के पास। विपक्ष के आरोपों पर सिंधिया ने कहा कि सरकार जनता के सुझावों पर ऐप को अपडेट करने को तैयार है।
इस विवाद ने साइबर सिक्योरिटी पर नई बहस छेड़ दी है। एक तरफ सुरक्षा का वादा, दूसरी तरफ प्राइवेसी का डर। लेकिन सिंधिया का स्पष्टीकरण सुनकर लगता है कि ऐप ज्यादा फायदा पहुंचाएगा। लाखों लोगों ने पोर्टल से राहत ली, अब ऐप से उम्मीदें और बढ़ेंगी। आप क्या सोचते हैं – ये ऐप दोस्त बनेगा या दुश्मन? कमेंट में बताएं। फिलहाल, सरकार और विपक्ष के बीच ये जंग जारी है, और जनता बीच में फंसी हुई।
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