पारसी धर्म के अनुसार होगा रतन टाटा का अंतिम संस्कार! इस परंपरा में शव को जलाया जाता न दफनाया जाता

रतन टाटा पारसी समुदाय से आते हैं लेकिन उनका अंतिम संस्कार पारसी रीति रिवाजों की जगह हिन्दू परंपराओं के अनुसार किया जाएगा। उनके पार्थिव शरीर को शाम 4 बजे मुंबई के वर्ली स्थित इलेक्ट्रिक अग्निदाह में रखा जाएगा। यहां करीब 45 मिनट तक प्रेयर होगी.
 
ratan tata last rites 10 oct 2024

Photo Credit: facbook

Jagruk Youth News, 10 october 2024, New Delhi,  रतन टाटा पारसी समुदाय से थे, और उनका अंतिम संस्कार पारसी परंपरा के अनुसार किया जाएगा। फिलहाल  रटन टाटा के पार्थिव शरीर को सुबह करीब 10.30 बजे एनसीपीए लॉन में ले जाया जाएगा, ताकि लोग दिवंगत आत्मा को अंतिम श्रद्धांजलि दे सकें। 

अंतिम संस्कार की जानकारी


रतन टाटा पारसी समुदाय से आते हैं लेकिन उनका अंतिम संस्कार पारसी रीति रिवाजों की जगह हिन्दू परंपराओं के अनुसार किया जाएगा। उनके पार्थिव शरीर को शाम 4 बजे मुंबई के वर्ली स्थित इलेक्ट्रिक अग्निदाह में रखा जाएगा। यहां करीब 45 मिनट तक प्रेयर होगी, इसके बाद अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। रतन टाटा का पार्थिव शरीर कोलाबा स्थित उनके घर ले जाया गया है। गुरुवार को उनका अंतिम संस्कार वर्ली के श्मशान घाट में किया जाएगा। सुबह करीब 10:30 बजे उनके पार्थिव शरीर को एनसीपीए लॉन में रखा जाएगा, ताकि लोग दिवंगत आत्मा को अंतिम श्रद्धांजलि दे सकें। बाद में, शाम 4 बजे, पार्थिव शरीर नरीमन पॉइंट से वर्ली श्मशान प्रार्थना हॉल के लिए अंतिम यात्रा पर निकलेगा।

परिवार के अनुसार, श्मशान घाट पर उनके पार्थिव शरीर को राष्ट्रीय ध्वज में लपेटा जाएगा, और पुलिस की बंदूक की सलामी दी जाएगी। इसके बाद पारसी रीति-रिवाजों के अनुसार अंतिम संस्कार संपन्न होगा।

पारसी अंतिम संस्कार की परंपरा


पारसी समुदाय का अंतिम संस्कार हिंदू, मुस्लिम और ईसाई परंपराओं से काफी अलग है। पारसी अपने मृतकों को जलाते नहीं हैं, और न ही दफनाते हैं। उनकी परंपरा लगभग 3,000 साल पुरानी है, जिसमें शवों को "टावर ऑफ साइलेंस" या दखमा में रखा जाता है।


टावर ऑफ साइलेंस क्या है?


जब किसी पारसी व्यक्ति का निधन होता है, तो उनके शव को शुद्ध करने की प्रक्रिया के बाद टावर ऑफ साइलेंस में खुले में छोड़ दिया जाता है। इसे "दोखमेनाशिनी" (Dokhmenashini) कहा जाता है, जिसमें शव को सूरज और मांसाहारी पक्षियों के लिए छोड़ दिया जाता है। इस प्रक्रिया को आकाश में दफनाने के रूप में भी देखा जा सकता है। बौद्ध धर्म में भी इस तरह का अंतिम संस्कार किया जाता है, जहां शवों को गिद्धों के हवाले किया जाता है।
 
रतन टाटा का अंतिम संस्कार न केवल उनके परिवार और प्रियजनों के लिए एक व्यक्तिगत क्षति है, बल्कि उनके द्वारा स्थापित मूल्यों और परंपराओं की भी याद दिलाता है। पारसी अंतिम संस्कार की यह अद्वितीय प्रक्रिया उनके जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण को दर्शाती है।

पारसी समुदाय, जो कभी मौजूदा ईरान यानी फारस को आबाद करता था, अब पूरी दुनिया में केवल कुछ ही बचे हैं। 2021 में हुए एक सर्वे के अनुसार, दुनिया में पारसियों की संख्या 2 लाख से भी कम है। इस समुदाय को अपनी अनोखी अंतिम संस्कार परंपरा के कारण कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। टावर ऑफ साइलेंस के लिए उपयुक्त स्थान की कमी और चील व गिद्ध जैसे मांसाहारी पक्षियों की घटती संख्या के कारण पिछले कुछ वर्षों में पारसी लोग अपने अंतिम संस्कार के तरीकों में बदलाव करने के लिए मजबूर हो रहे हैं।

इनपूट-पंजाब केसरी

Edited By  Bhoodev Bhagalia

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