बिरसा मुंडा को नमन: छात्रों ने बनाई ऐसी रंगोली कि हर कोई कर रहा तारीफ

ताजा खबरों का अपडेट लेने के लिये ग्रुप को ज्वाइन करें Join Now

मयंक त्रिगुण, वरिष्ठ संवाददाता 

Moradabad-बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के मौके पर जनजाति गौरव दिवस मनाया जा रहा है। इस खास अवसर पर चित्रगुप्त विद्यालय के छात्रों ने कुछ ऐसा किया जो सबको हैरान कर गया। उन्होंने अनोखे अंदाज में बिरसा मुंडा को नमन किया। स्कूल के मैदान में फैली एक विशालकाय रंगोली बनाकर इन बच्चों ने महान स्वतंत्रता सेनानी को श्रद्धांजलि अर्पित की। रंग-बिरंगे फूलों और रंगों से सजी यह रंगोली देखने लायक थी, जिसमें बिरसा मुंडा की तस्वीर और उनके संघर्ष की झलकियां साफ नजर आ रही थीं। बच्चे सुबह से ही इस काम में जुटे थे, और शाम तक यह रंगोली तैयार हो गई। हर कोई इसे देखकर तारीफ कर रहा था, क्योंकि यह सिर्फ एक रंगोली नहीं, बल्कि बिरसा मुंडा के प्रति सच्ची भावना का प्रतीक थी।

प्रधानाचार्य ने बच्चों को दी प्रेरणा

इस कार्यक्रम के दौरान विद्यालय के प्रधानाचार्य ने छात्रों को बिरसा मुंडा के जीवन चरित्र पर रोशनी डालते हुए खूब प्रेरित किया। उन्होंने बताया कि बिरसा मुंडा कोई साधारण इंसान नहीं थे, बल्कि एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपनी जनजाति और देश की रक्षा के लिए जीवन भर लड़ाई लड़ी। प्रधानाचार्य ने बच्चों से कहा कि आज के समय में भी हमें उनके जैसे साहस की जरूरत है। उन्होंने छात्रों को यह भी याद दिलाया कि बिरसा मुंडा ने कभी हार नहीं मानी, और उनके संघर्ष की कहानी हमें आगे बढ़ने की ताकत देती है। बच्चे ध्यान से सुन रहे थे, और कई ने तो सवाल भी पूछे कि बिरसा मुंडा ने क्या-क्या किया। प्रधानाचार्य ने मुस्कुराते हुए जवाब दिए, जिससे पूरा माहौल और भी जीवंत हो गया। इस तरह का कार्यक्रम न सिर्फ बच्चों को इतिहास से जोड़ता है, बल्कि उन्हें देशभक्ति का पाठ भी पढ़ाता है।

बिरसा मुंडा का जन्म और संघर्ष

झारखंड में जन्मे बिरसा मुंडा ने अपना पूरा जीवन जंगल, जल और जमीन को बचाने के लिए समर्पित कर दिया। वे एक जनजातीय नेता थे, जिन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ आवाज उठाई। उस समय अंग्रेज आदिवासियों की जमीन छीन रहे थे, जंगलों को काट रहे थे और पानी के स्रोतों पर कब्जा कर रहे थे। बिरसा मुंडा ने देखा कि उनकी जनजाति कैसे शोषित हो रही है, और उन्होंने इसके खिलाफ विद्रोह किया। उनका नारा ‘अबुआ राज एते जना, महारानी राज तुंडु जना’ बहुत मशहूर हुआ, जिसका मतलब था कि हमारा राज आएगा और रानी का राज खत्म होगा। उन्होंने लोगों को एकजुट किया और ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी। बिरसा मुंडा की अगुवाई में आदिवासी समुदाय ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया, जो आज भी प्रेरणा का स्रोत है।

अंग्रेजों को बिरसा मुंडा का यह विद्रोह बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्होंने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। जेल की सलाखों के पीछे भी बिरसा मुंडा का हौसला नहीं टूटा। वे वहां से भी अपने लोगों को संदेश भेजते रहे। आखिरकार जेल से बाहर निकलने के बाद भी उनका संघर्ष जारी रहा। उन्होंने फिर से लोगों को इकट्ठा किया और अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ी। दुर्भाग्य से, बहुत कम उम्र में ही उनकी मौत हो गई, लेकिन उनका नाम अमर हो गया। आज जनजाति गौरव दिवस पर हम उन्हें याद करते हैं, क्योंकि他们的 योगदान के बिना आदिवासी इतिहास अधूरा है।

जनजाति गौरव दिवस का महत्व

जनजाति गौरव दिवस हर साल 15 नवंबर को मनाया जाता है, जो बिरसा मुंडा की जयंती है। इस दिन पूरे देश में आदिवासी संस्कृति और उनके योगदान को सम्मान दिया जाता है। चित्रगुप्त विद्यालय जैसे स्कूल इस तरह के कार्यक्रम आयोजित करके नई पीढ़ी को इतिहास से जोड़ते हैं। इस साल 150वीं जयंती होने के कारण उत्साह और भी ज्यादा था। छात्रों की रंगोली ने न सिर्फ बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि दी, बल्कि लोगों को उनके जीवन के बारे में सोचने पर मजबूर किया। ऐसे कार्यक्रमों से बच्चे सीखते हैं कि संघर्ष कैसे किया जाता है और देश के लिए क्या योगदान देना चाहिए।

बिरसा मुंडा की कहानी आज भी relevant है। आज जब पर्यावरण की बात होती है, तो उनके जंगल, जल और जमीन बचाने के प्रयास याद आते हैं। क्लाइमेट चेंज के इस दौर में उनके संघर्ष से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। अंग्रेजों के खिलाफ उनकी लड़ाई हमें बताती है कि अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना कितना जरूरी है। चित्रगुप्त विद्यालय के छात्रों ने यह दिखाया कि छोटे-छोटे प्रयासों से भी बड़ा संदेश दिया जा सकता है। उनकी रंगोली में इस्तेमाल किए गए रंग प्रकृति के थे, जो बिरसा मुंडा के संघर्ष से जुड़े थे।

बच्चों का उत्साह और सीख

स्कूल के बच्चे इस कार्यक्रम से बहुत उत्साहित थे। कई बच्चों ने बताया कि उन्हें बिरसा मुंडा के बारे में पहले ज्यादा जानकारी नहीं थी, लेकिन प्रधानाचार्य की बातों से वे inspired हुए। एक छात्र ने कहा, “बिरसा मुंडा जैसे लोग हमें सिखाते हैं कि हार मत मानो।” रंगोली बनाने में घंटों लगे, लेकिन बच्चों को मजा आया। उन्होंने टीम वर्क से काम किया, जो जीवन की एक बड़ी सीख है। ऐसे कार्यक्रम स्कूलों में नियमित होने चाहिए, ताकि बच्चे किताबों से बाहर निकलकर इतिहास को महसूस करें।

बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती पर यह श्रद्धांजलि एक यादगार पल था। जनजाति गौरव दिवस हमें याद दिलाता है कि हमारे देश के असली हीरो कौन हैं। चित्रगुप्त विद्यालय ने यह दिखाया कि शिक्षा सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन के सबक सिखाती है। अगर आप भी ऐसे कार्यक्रमों में हिस्सा लेना चाहते हैं, तो अपने आसपास के स्कूलों में जाकर देखिए। बिरसा मुंडा का संघर्ष आज भी हमें प्रेरित करता है, और ऐसे आयोजनों से यह जीवित रहता है।