मयंक त्रिगुण, ब्यूरो चीफ
मुरादाबाद। जनपद के गांव मऊ के ग्रामीणों का दर्द एक बार फिर सबके सामने आ गया है। बुधवार को बड़ी संख्या में ये ग्रामीण दिल्ली रोड पर स्थित मुरादाबाद विकास प्राधिकरण (एमडीए) के कार्यालय पहुंचे। यहां उन्होंने प्राधिकरण के वरिष्ठ अधिकारियों से अपनी समस्या बताई और न्याय की गुहार लगाई। ग्रामीणों का कहना है कि एमडीए ने उनके मकानों को चिन्हित कर दिया है, जिससे पूरे गांव में डर और अनिश्चितता फैल गई है। हर कोई सोच रहा है कि कब उनके सिर पर छत छिन जाएगी। ये लोग सालों से यहां बसते आ रहे हैं, लेकिन अब अचानक सब कुछ बदलने वाला है।
पट्टाधारक होने के बावजूद कार्रवाई की आशंका
ये ग्रामीण ज्यादातर गरीब परिवारों से आते हैं। उन्होंने बताया कि सरकार ने उन्हें सालों पहले वैध तरीके से पट्टे की जमीन दी थी। इसी आधार पर उन्होंने अपने घर बनाए और दशकों से यहां रह रहे हैं। बच्चे यहां पैदा हुए, परिवार यहां पले-बढ़े। लेकिन अब एमडीए इन मकानों को अवैध बता रही है और कार्रवाई की धमकी दे रही है। ग्रामीणों का कहना है कि इससे उनका पूरा जीवन और भविष्य खतरे में पड़ गया है। वे रातों को सो नहीं पाते, क्योंकि कल क्या होगा, इसका कोई ठिकाना नहीं। एक ग्रामीण ने कहा, “हमारे पास और कुछ नहीं है, बस यही घर है। अगर ये चला गया तो हम कहां जाएंगे?” इस तरह की कहानियां पूरे गांव में सुनाई दे रही हैं। गरीबी में जीना पहले से मुश्किल था, अब ये नई मुसीबत और बढ़ गई है। ग्रामीणों ने अधिकारियों से पूछा कि अगर पट्टा वैध है तो क्यों ये कार्रवाई? लेकिन जवाब में सिर्फ आश्वासन मिलते हैं, कोई ठोस कदम नहीं। ये स्थिति न सिर्फ इन परिवारों को प्रभावित कर रही है, बल्कि पूरे इलाके में एक तरह का तनाव पैदा कर दिया है। लोग एक-दूसरे से बात करते हैं, सलाह लेते हैं, लेकिन समाधान दूर-दूर तक नजर नहीं आता।
आज़ाद समाज पार्टी ने सुनी ग्रामीणों की पीड़ा
शुक्रवार को आज़ाद समाज पार्टी के पदाधिकारी गांव मऊ पहुंचे। उन्होंने पीड़ित ग्रामीणों की बातें बड़े ध्यान से सुनीं। पार्टी के नेता मौके पर गए, हालात देखे और ग्रामीणों को यकीन दिलाया कि इस न्याय की लड़ाई में पार्टी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है। एक नेता ने कहा, “हम गरीबों की आवाज हैं, और हम इसे दबने नहीं देंगे।” ग्रामीणों को लगा कि शायद अब कुछ उम्मीद बंधी है। पार्टी ने वादा किया कि वे हर संभव मदद करेंगे, चाहे वो कानूनी लड़ाई हो या राजनीतिक दबाव। ये विजिट ग्रामीणों के लिए एक राहत की सांस जैसी थी, क्योंकि अकेले लड़ना मुश्किल हो रहा था। पार्टी के आने से गांव में एक नई ऊर्जा आई, लोग अब संगठित होकर अपनी बात रखने लगे हैं।
काशीराम आवास कॉलोनी के रास्ते को लेकर विवाद
ग्रामीणों का मुख्य आरोप ये है कि एमडीए काशीराम आवास कॉलोनी के लिए रास्ता बनाने के बहाने गांव मऊ के गरीबों के घरों को निशाना बना रही है। उन्होंने बताया कि कॉलोनी बनाते समय कोई स्थायी वैकल्पिक रास्ता नहीं बनाया गया। मजबूरी में लोगों को रेलवे लाइन पार करके आना-जाना पड़ता था। लेकिन बाद में रेलवे विभाग ने सुरक्षा के नाम पर वो रास्ता बंद कर दिया। अब कॉलोनी के लोग परेशान हैं, लेकिन इसका खामियाजा क्यों गरीब ग्रामीण भुगतें? ग्रामीणों ने कहा कि ये अन्याय है, क्योंकि उनके घर सालों पुराने हैं और वैध पट्टों पर बने हैं। विवाद की जड़ यही है कि एमडीए अब इन घरों को तोड़कर नया रास्ता निकालना चाहती है। लेकिन ग्रामीण पूछते हैं कि क्या कोई और तरीका नहीं है? क्या विकास के नाम पर गरीबों को बेघर करना जरूरी है? ये सवाल पूरे इलाके में गूंज रहे हैं। कॉलोनी के निवासियों को भी परेशानी है, लेकिन समाधान दोनों पक्षों को ध्यान में रखकर निकाला जाना चाहिए। ग्रामीणों ने पुराने दस्तावेज दिखाए, जो साबित करते हैं कि उनकी जमीन वैध है। लेकिन एमडीए की तरफ से कोई स्पष्ट जवाब नहीं आ रहा।
समाधान के बजाय तोड़फोड़ की योजना का आरोप
रेलवे का रास्ता बंद होने के बाद काशीराम कॉलोनी का आना-जाना पूरी तरह ठप हो गया। ग्रामीणों का कहना है कि इस समस्या का स्थायी हल ढूंढने की बजाय एमडीए अब गांव मऊ के मकानों को तोड़कर रास्ता बनाने की साजिश रच रही है। ये गरीब परिवारों के साथ सरासर नाइंसाफी है। एक महिला ग्रामीण ने रोते हुए कहा, “हमारे बच्चे यहां खेलते हैं, हमारी जिंदगी यहां बसी है। क्या विकास सिर्फ अमीरों के लिए है?” एमडीए पर आरोप है कि वे आसान रास्ता चुन रहे हैं, जिसमें गरीबों का नुकसान हो। लेकिन क्या ये सही है? ग्रामीणों ने मांग की कि पहले कोई वैकल्पिक व्यवस्था की जाए, फिर कोई कार्रवाई हो। लेकिन अभी तक कोई सुनवाई नहीं हो रही। ये स्थिति न सिर्फ इन ग्रामीणों को प्रभावित कर रही है, बल्कि ये एक बड़ा सवाल उठाती है कि विकास की आड़ में कितने गरीब बेघर हो जाते हैं। पार्टी के नेता भी इस पर सहमत हैं और कहते हैं कि ये मुद्दा बड़ा है, इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
राष्ट्रीय नेतृत्व तक पहुंचेगा मामला
आज़ाद समाज पार्टी के पदाधिकारियों ने ग्रामीणों को भरोसा दिया कि इस गंभीर समस्या को नगीना के सांसद और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तक पहुंचाया जाएगा। उन्होंने कहा कि गरीबों के घर बचाने के लिए हर स्तर पर लड़ाई लड़ी जाएगी। चाहे वो कोर्ट हो या सरकार, पार्टी पीछे नहीं हटेगी। ग्रामीणों को ये सुनकर थोड़ी राहत मिली। वे उम्मीद कर रहे हैं कि ऊपर तक आवाज पहुंचने से न्याय मिलेगा और उनका सालों पुराना बसेरा सुरक्षित रहेगा। ये मामला अब लोकल से नेशनल लेवल पर जा सकता है, जो एमडीए पर दबाव बढ़ाएगा। ग्रामीणों का कहना है कि वे शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांग रख रहे हैं, लेकिन अगर जरूरत पड़ी तो और बड़ा आंदोलन करेंगे। पार्टी के समर्थन से अब उन्हें ताकत मिली है। अंत में, ये कहानी एक बार फिर साबित करती है कि गरीबों की आवाज सुनने के लिए संघर्ष जरूरी है। क्या एमडीए अब कोई कदम उठाएगी या मामला और बढ़ेगा? समय बताएगा।
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