मयंक त्रिगुण, वरिष्ठ संवाददाता
मुरादाबाद। उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले में एक और दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है। एक सरकारी स्कूल के टीचर जो BLO (बूथ लेवल ऑफिसर) भी बने थे, उन्होंने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी। मरने वाले टीचर का नाम सर्वेश सिंह (46 साल) था। सुसाइड करने से पहले उन्होंने दो पन्नों का सुसाइड नोट लिखा, जिसमें उन्होंने साफ-साफ SIR के भारी-भरकम टारगेट से परेशान होने की बात कही है।
सुसाइड नोट में क्या-क्या लिखा?
सर्वेश सिंह ने सुसाइड नोट बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) के नाम लिखा था। उसमें उन्होंने अपनी तकलीफ कुछ इस तरह बयान की – “मैं रात-दिन मेहनत कर रहा हूं, फिर भी SIR का टारगेट पूरा नहीं कर पा रहा। दिन-रात बहुत मुश्किल और टेंशन में गुजर रही है। सिर्फ 2-3 घंटे ही सो पाता हूं। मेरे घर में चार बेटियां हैं, जिनमें से दो कई दिनों से बीमार चल रही हैं।”
इस नोट को पढ़कर किसी का भी दिल बैठ जाए। एक तरफ स्कूल की नौकरी, ऊपर से BLO का काम और उस पर SIR का रोज़ का टारगेट – ये बोझ आखिरकार सर्वेश के लिए असहनीय हो गया।
कहां और कब हुआ हादसा?
यह दर्दनाक वाकया मुरादाबाद के भोजपुर थाना क्षेत्र के बहेड़ी गांव का है। सर्वेश सिंह जाहिदपुर सिकंदरपुर कंपोजिट स्कूल में सहायक अध्यापक थे। इसी साल 7 अक्टूबर को उन्हें BLO बनाया गया था। यानी सिर्फ डेढ़-दो महीने में ही इतना दबाव बन गया कि उन्होंने जिंदगी खत्म करने का फैसला ले लिया।
यूपी में SIR शुरू होने के बाद छठी मौत
सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि उत्तर प्रदेश में SIR (सिस्टेमेटिक वोटर्स एजुकेशन एंड इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन) प्रोग्राम शुरू होने के बाद अब तक 6 BLO की जान जा चुकी है। इनमें से 3 ने सुसाइड किया है, दो की मौत हार्ट अटैक से हुई और एक की जान ब्रेन हेमरेज से गई।
मतलब साफ है – टीचरों पर पढ़ाई के साथ-साथ चुनावी काम का इतना बोझ डाला जा रहा है कि उनकी जान पर बन आई है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर कब तक टीचरों को इस तरह निचोड़ा जाता रहेगा?
परिजनों का कहना है कि सर्वेश पिछले कई दिनों से बहुत परेशान चल रहे थे। रात को भी फोन पर SIR का काम करते दिखते थे। नींद पूरी नहीं हो रही थी, खाना ठीक से नहीं खा रहे थे। आखिरकार 46 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
पुलिस ने शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है और सुसाइड नोट के आधार पर जांच शुरू कर दी है। लेकिन सवाल वही है – क्या सिर्फ जांच से कुछ होगा या सरकार इस अतिरिक्त बोझ को कम करने के लिए कोई कदम उठाएगी?
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